मन की शांति

श्रीराम शर्मा
एक राजा था जिसे पेंटिंग से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह मांगा इनाम देगा। फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे। राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया। अब इन्हीं दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था। पहली पेंटिंग एक अति सुंदर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ था कि उसके अंदर की सतह तक नजर आ रही थी और उसके आसपास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था, जिसमें रुई के गोलों के सामान सफेद बादल तैर रहे थे। जो कोई भी इस पेंटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती। दूसरी पेंटिंग में भी पहाड़ थे, पर वे बिलकुल रूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे, जिनमें बिजलियां चमक रही थीं, घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी। तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। जो कोई भी इस पेंटिंग को देखता यही सोचता कि भला इसका शांति से क्या लेना देना। इसमें तो बस अशांति ही अशांति है। सभी आश्वस्त थे कि पहली पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि दूसरी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह मांगा इनाम देंगे। हर कोई आश्चर्य में था। पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, लेकिन महाराज उस पेंटिंग में ऐसा क्या है जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया। जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरी पेंटिंग ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। आओ मेरे साथ राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा। दूसरी पेंटिंग के समक्ष पहुंच कर राजा बोले, झरने के बायीं ओर हवा से एक तरह झुके इस वृक्ष को देखो, इसकी डाली पर बने इस घोंसले को देखो, देखो कैसे एक चिडि़या इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर अपने बच्चों को भोजन करा रही है। फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया शांत होने का मतलब ये नही है कि आप ऐसे स्थिति में हों जहां कोई शोर नहीं हो, कोई समस्या नहीं हो, जहां कड़ी मेहनत नहीं हो, जहां आपकी परीक्षा नहीं हो। शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति,अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केंद्रित रहें, अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित रहें। अब सभी समझ चुके थे कि दूसरी पेंटिंग को राजा ने क्यों चुना है। लोग शांति को बाहरी दुनिया में, पहाड़ों, झीलों में ढूंढते हैं, जबकि शांति हमारे अंदर की चीज है और हकीकत यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफों और दिक्कतों के बीच भी शांत रहना ही असल में शांत होना है।


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