कोरोना की दहशत और लॉकडाउन की वजह से मुश्किल से मिला वृद्ध महिला की अर्थी को कांधा
दिल्ली में एक वृद्ध महिला की मौत के बाद उसकी अर्थी को कंधा देने के लिए चार कंधे भी मुश्किल से ही मिल सके। वृद्धा कोरोना की मरीज नहीं थी, फिर भी कोरोना की दहशत और लॉकडाउन की वजह से पड़ोसी भी उसके अंतिम संस्कार में नहीं आए। महिला का बेटा और बेटी अपनी मां के शव को एक वाहन में लेकर निगमबोध घाट पहुंचे। यहां भी अंतिम यात्रा के लिए कोई कंधा देने वाला उनके साथ नहीं था, लेकिन तभी नर सेवा, नारायण सेवा संस्था के दो सदस्य और निगमबोध घाट का एक कर्मचारी उनकी मदद के लिए आगे आए।
साउथ अनारकली निवासी ईश्वरी देवी (65 वर्ष) काफी दिनों से किडनी की बीमारी से ग्रस्त थीं। उनके बेटे हरीश और दोनों बेटियों ने उन्हें चार दिन पहले गुरु तेग बहादुर अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां वृद्धा का कोरोना भी टेस्ट कराया गया था, जोकि नेगेटिव रहा। बीमारी के चलते सोमवार रात वृद्धा ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। मंगलवार सुबह हरीश बड़ी बहन के साथ अस्पताल पहुंचे। वहां से किराये के एक वाहन में शव लेकर घर आए, लेकिन गली का कोई पड़ोसी अपने घरों से बाहर निकल कर उनके साथ नहीं आया। उल्टा पड़ोसी उन पर गुस्सा हुए अपनी खिड़कियों से हरीश को वहां से जल्दी से जल्दी शव निगमबोध घाट ले जाने के लिए कहने लगे।
इधर, वाहन चालक शव को निगमबोध घाट तक ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे अनारकली से निगमबोध घाट तक जाने का किराया अलग से चाहिए था। हरीश ने उसे बताया कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह डबल किराया दे सके और अंतिम संस्कार के लिए भी पैसों की जरूरत है। इसके बाद वह अपनी बहन के साथ किसी तरह मां के शव को उसी वाहन से लेकर निगमबोध घाट पहुंचा।
वृद्धा के शव को नीचे उतारने के बाद वहां अर्थी तैयार की गई, लेकिन मां की अंतिम यात्रा को दाह संस्कार के लिए आगे ले जाने के लिए बाकी तीन और कंधे भी उसके साथ नहीं थे। इस दौरान वहां मौजूद निगमबोध घाट कर्मी और नर सेवा नारायणा सेवा संस्था के दो सदस्य उसकी मदद के लिए आगे आए और इसके बाद बेटे ने अपनी मां के अंतिम संस्कार की अंतिम यात्रा संगम में स्नान कराकर पूरी की। इतना ही नहीं, अंतिम संस्कार की दक्षिणा के पैसे भी संस्था ने ही घाट के पंडित जी को अपनी तरफ से दिए।